सस्ती घरेलू बिजली छोड़ 7500 करोड़ की बाहर से खरीद की तैयारी, जानें अगले 5 साल की ये प्लानिंग
Energy Development Corporation: ऊर्जा विकास निगम अब अगले पांच साल के लिए 500 मेगावाट बिजली खरीदने की प्लानिंग कर रहा है। इसकी खरीद लागत 7500 करोड़ रुपए आंकी गई है। इसके लिए टेंडर डॉक्यूमेंट तैयार कर मंजूरी के लिए राज्य विद्युत विनियामक आयोग में याचिका लगाई गई है। यह खरीद वर्ष 2030 तक की बिजली डिमांड पूरी करने के लिए की जाएगी। गौर करने वाली बात यह है कि पिछले दिनों ही थर्मल और अक्षय ऊर्जा से जुड़े करोड़ों रुपए के समझौते किए गए।
500 मेगावाट खरीद के लिए याचिका
इनसे 36 हजार मेगावाट से ज्यादा थर्मल, सोलर व विंड प्लांट से बिजली उत्पादन पर काम हो रहा है। इसके अलावा 6 हजार मेगावाट क्षमता का बैटरी स्टोरेज प्रोजेक्ट लगाने का काम शुरू किया जा रहा है। एक्सपर्टस ने इसी आधार पर आयोग में आपत्ति दर्ज कराई है। मौजूदा समझौतों से मिलने वाली बिजली को आधार मानते हुए दोबारा मूल्यांकन कराने की जरूरत जताई है। उधर, 3200 मेगावाट बिजली खरीद प्रोजेक्ट पर पहले से सुनवाई चल रही है।
पहले भी हो चुका है
इससे पहले भी निगम ने आयोग से 160, 266 और 294 मेगावाट बिजली खरीद के लिए अनुमति मांगी थी, जिसमें सिर्फ 160 मेगावाट की मंजूरी मिली थी। मई 2023 में इसका टेंडर भी जारी हुआ, लेकिन 5.30 प्रति यूनिट की दर को अधिक मानते हुए विद्युत खरीद आदेश जारी नहीं किया गया।
बताई बिजली की कमी
वर्ष | कमी |
2025-26 | 1061 मेगावाट |
2026-27 | 1930 मेगावाट |
2027-28 | 2895 मेगावाट |
2028-29 | 3919 मेगावाट |
2029-30 | 5007 मेगावाट |
ऊर्जा आकलन समिति की सिफारिश
एनर्जी असेसमेंट कमेटी की 12 व 17 अप्रेल 2023 और 16 मई 2025 की बैठक में इस 500 मेगावाट बिजली खरीद को अनुमोदित किया। इसके अलावा सीईए (केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण) ने वर्ष 2023-24 से 2031-32 तक की योजना में राजस्थान में बिजली की संभावित कमी दर्शाई।
पाइपलाइन प्रोजेक्टस का मूल्यांकन नहीं
कुसुम सी, कुसुम ए, रूफटॉप सोलर, सरकारी बिल्डिंग पर सोलर प्लांट, बैटरी स्टोरेज, गैस आधारित प्लांट और एनटीपीसी से विद्युत खरीद जैसे प्रस्ताव पाइपलाइन में हैं। इनका मूल्यांकन एनर्जी असेसमेंट कमेटी की रिपोर्ट में नहीं है। अफसरों ने कमेटी सिफारिश का तो ध्यान रखा, पर मौजूदा बड़े प्रोजेक्ट पर फोकस नहीं किया।
प्रोजेक्टस पर ध्यान नहीं
ऊर्जा मांग का आकलन सिर्फ 2022-23 के आंकड़ों पर आधारित है, जबकि तीन साल की औसत मांग को आधार बनाते तो तर्कसंगत होता। हजारों मेगावाट के प्रोजेक्ट निर्माणाधीन हैं, जिन्हें नजरअंदाज किया गया। दिन में सौर ऊर्जा पर्याप्त मिल रही है, फिर भी 24 घंटे बिजली खरीदने की योजना क्यों? यदि सिर्फ 5 घंटे डिस्पैचेबल रिन्यूएबल एनर्जी खरीदी जाए, तो भी गैप पूरा हो सकता है। हैरानी है कि सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन से 4.98 रु. यूनिट में विकल्प उपलब्ध है, फिर इस पर बोर्ड में चर्चा क्यों नहीं हुई। -डी.डी. अग्रवाल, विशेषज्ञ