राजस्थान के 8000 सरकारी स्कूल जर्जर, नौनिहालों का भविष्य बल्लियों के सहारे; मरम्मत का इंतजार

जयपुर। राजस्थान के सरकारी स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर सरकार कितनी गंभीर है, इसकी पोल झालावाड़ में हुए स्कूल हादसे ने खोल दी है। इससे साबित हो गया है कि स्कूलों में बच्चों की जान भी सुरक्षित नहीं है। माता-पिता ने जब मासूमों का शव देखा तो उन पर कहर टूट पड़ा।
एक साथ पढ़ने गए भाई-बहन भी अकाल मौत का ग्रास बन गए। उनके परिवारों का सब कुछ खत्म हो गया। पूरे गांव में हर कोई आंसू बहाते हुए सरकारी तंत्र को कोस रहा है। राज्य के सैकड़ों स्कूलों के संस्था प्रधान पिछले दो साल से विभाग से भवनों की मरम्मत के लिए बजट मांगते-मांगते थक गए, लेकिन सरकारी तंत्र पर कोई असर नहीं हुआ।
छत को लकड़ी के पट्टों का सहारा
प्रदेश में आठ हजार स्कूल ऐसे हैं, जहां बारिश के दिनों छत टपक रही हैं। दीवारें जर्जर हैं और प्लास्टर उखड़ रहा है। कई जगह स्कूल छत को गिरने से बचाने के लिए लकड़ी के पट्टों का इस्तेमाल किया जा रहा है। शिक्षा विभाग ने हाल ही आठ हजार स्कूलों का प्रस्ताव स्कूल शिक्षा परिषद को भेजा। इनमें से महज दो हजार स्कूलों का चयन कर इनमें मरम्मत के लिए 175 करोड़ प्रस्ताव बनाकर सरकार को भेज दिया, लेकिन राशि अभी तक नहीं मिली।
हादसे के बाद दौड़े
हादसे के बाद विभाग की नींद खुली और आनन-फानन में हर जिले के सरकारी स्कूलों का निरीक्षण कराने के लिए टीम दौड़ाई। सीएमओ के सख्त निर्देश के बाद विभाग ने जिला शिक्षा अधिकारियों से जर्जर भवनों की एक बार फिर सूचना मंगवाई।
छह हजार स्कूलों की अभी भी सुध नहीं
इस बार केंद्र से सिर्फ नवीन भवनों का बजट मिला। इसके चलते सरकार ने पिछले बजट में 700 स्कूलों की मरम्मत की घोषणा की। इसके लिए 80 करोड़ जारी हो गए, जिनका कार्य चल रहा है। वहीं, हाल ही बजट में 175 करोड़ स्वीकृत किए गए। लेकिन बजट कम होने के कारण दो हजार स्कूलों को शामिल किया गया। करीब छह हजार स्कूल मरम्मत का इंतजार कर रहे हैं।
बल्लियों पर टिका नौनिहालों का भविष्य
भीलवाड़ा: धनोप के जोरा का खेड़ा ग्राम स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय भवन की टूटी छत को बल्लियों के सहारे टीका रखी है। अभी तक छत की मरम्मत नहीं की गई है। छात्रों की जान को खतरा बना हुआ है।
विभागीय अधिकारियों को सब पता… फिर भी सुध नहीं
कोटा: राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय बम्बूलिया मे क्षतिग्रस्त दीवारों के बीच बरामदे में बैठकर विद्यार्थी पढ़ने को मजबूर हैं। हालांकि स्कूल की हालत से शिक्षा विभाग के अधिकारी वाकिफ हैं, लेकिन अभी तक सुध नहीं ली है।
आदेश निकालकर भूले, पालना नहीं
विभाग के शिक्षा सचिव कृष्ण कुणाल की ओर से 14 जुलाई को आदेश जारी कर मानसून से पूर्व सरकारी स्कूलों की तैयारी करने के निर्देश दिए थे। इतना ही नहीं, जिन स्कूलों के भवन जर्जर है, उन जगहों पर बच्चों को नहीं बैठाने के निर्देश दिए। लेकिन विभाग आदेश देकर भूल गया।